अपरमार,मिर्गी (EPILEPSY)रोग परिचय, लक्षण एवं कारण

Epilepsy अपरमार,मिर्गी रोग परिचय, लक्षण एवं कारण

what is epilepsy अपरमार,मिर्गी (EPILEPSY)रोग परिचय, लक्षण एवं कारण – इसे दौरे पड़ना तथा मिर्गी आदि
नामों से जाना जाता है। अचानक बेहोश हो जाना तथा बेहोश होने पर थोड़ी बहुत अकड़न को अपस्मार कहा जाता है।
बेहोशी या मूर्छा आने से पूर्व प्रायः रोगी को कोई आभास नहीं होता है कि उसे दौरा कब पड़ने वाला है। बातें करते-करते या बोलते-बोलते अथवा चलते-चलते अचानक रोगी बेहोश हो जाता है। आज
तक इस रोग का मूल कारण ज्ञात नहीं हो सका है। यह रोग अक्सर 10 से 20 वर्ष की आयु में ही होता है।
अपरमार,मिर्गी (EPILEPSY)रोग परिचय, लक्षण एवं कारण

Epilepsy अपरमार,मिर्गी रोग कैसे होता है।

Epilepsy symptoms अत्यधिक मानसिक अथवा शारीरिक श्रम, ऋतु सम्बन्धी दोष, आंव, कृमिविकार तथा चोट आदि के कारणों से विद्वानों ने इस रोग की उत्पत्ति माना है। सिर में चोट या आँतो में कृमियों की अधिकता इस रोग में प्रधान कारण है।


Epilepsy अपरमार ,मिर्गी रोग लक्षण

Epilepsy symptomsइस रोग में रोगी अचानक जमीन पर गिर पड़ता है, पहले अकड़न से गर्दन टेढ़ी पड़ती है, फटी-फटी तथा पलकें स्थिर सी हो जाती है तथा मुँह में फेन (झाग) भर जाते हैं, रोगी हाथ-पैर पटकता है, दांतों को जोर-जोर चलाता है,जिसके कारण जीभ भी कट जाती है या फिर दांती लग जाती है। किसी-किसी
की जीभ बाहर भी निकल जाती है।
किसी-किसी मिर्गी के रोगी को बेहोशी की ही हालत में अनजाने में पाखाना या पेशाब भी हो जाया करता है। रोगी को श्वास-प्रश्वास में भी कष्ट होता है, दौरा 10-15 मिनट से लेकर 2-3 घन्टे तक
रह सकता है। इसके उपरान्त दौरा घटना प्रारम्भ हो जाता है तथा श्वास-प्रश्वास में भी सुधार आता चला जाता है अन्नतः रोगी होश में आ जाता है। फिर वह थकावट के कारण अक्सर सो जाता है।
इसके आक्षेप एकाएक प्रारम्भ होते है तब शरीर में अकड़न के समय टांगों या बाजुओं में जोर-जोर के झटके लगते रहते हैं, इन झटकों के कारण ही रोगी को थकावट हो जाती है। रोगी को जब दौरे आते हैं तब उसका मुँह एक तरफ को घूम जाता है, आँखों की पुतलियाँ गोलाई में घूमने लग जाती हैं या बहुत ऊपर चढ़ जाती हैं तथा पथरा सी जाती है, जबड़ा बैठ जाता है, मुट्ठियाँ कस जाती है,
रोगी के मुख से उस समय ओं ओं-गों गों की आवाज निकल जाती है तथा बेहोश भी हो जाता है । कभी-कभी यौवनावस्था में अपस्मार शान्त हो जाता है,कभी-कभी आजीवन चलता रहता है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, मानसिक अवस्था बिगड़ती जाती है। बुद्धि मन्द होकर स्मरण शक्ति नष्ट होने लगती है। कभी-कभी ज्ञान-शक्ति बिल्कुल ही नष्ट हो जाती है।


Epilepsyअपरमार,मिर्गी रोग उपचार

Epilepsy अपरमार,मिर्गी रोग उपचार epilepsy treatment-आवश्यक निर्देश
  • बच्चों तथा दुर्बल जनों को बेट्री या टेलीविजन या सिनेमा हाल में नजदीक पर्दे के पास से फिल्म देखने आदि से भी यह रोग हो जाता है। अत: इस पर प्रतिबन्ध लगायें।
  • रोगी को दौरा पड़ने पर बाँयी या दाँयी करवट से लिटा दें ताकि उसका मुँह तथा सिर एक ओर होने से मुँह का तरल तथा झाग आसानी से निकल जाये क्योंकि यदि रोगी चित्त लेटेगा तो मुँह ऊपर रहेगा ऐसी परिस्थिति में मुँह का तरल व झाग आदि उसकी वायु प्रणाली में चली जाने से रोगी की सांस रुक जाने से रोग बढ़ जाता है। साफ कपड़े से रोगी नाक, मुँह तथा गले से तरल एवं झाग साफ करते रहना चाहिए।
  • रोगी के बेहोश होने पर शीघ्र स्वस्थ बनाने हेतु उसको ब्रान्डी शराब, गर्म-गर्म चाय या काफी उसके गले में न डालें, क्योंकि यह तरल वायु प्रणालियों में जाकर हानि पहुँचा सकता है।
  • जिस रोगी को मिर्गी के दौरे पड़ते हों तथा उसकी चिकित्सा (कोई मिर्गी नाशक टिकिया) चल रही हो तो उसे पूर्ण लाभ न होने तक चालू ही रखें अन्यथा कभी-कभी दवा बन्द कर देने से मिर्गी के दौरों में अधिक तीव्रता आजाती है। इस अवस्था को (STATUS EPILEPTICUS) कहते हैं और फिर पुनःदवा देने पर भी नहीं रूकते हैं, इस अवस्था में रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।
  • गर्भाशय की खराबी, ऋतुदोष, कृमिविकार, दांत निकलना इत्यादि जोभी कारण प्रतीत हो उसकी चिकित्सा करनी चाहिए। पेट साफ रखना चाहिए। मांस का सेवन यदि करते हों तो कर सकते हैं।
  • यदि किसी रोगी को मिरगी के दौरे का पूर्ण आभास हो तो उसे राई के पानी से वमन करानी चाहिए, इससे दौरा रुक जाता है।
  • दौरे के समय रोगी को अमोनिया फोर्ट की शीशी खूब हिलाकर या ताजा कली चूना तथा नौशादर समभाग मिलाकर सुंघाना चाहिए। इसके उपलब्ध न रहने पर तेज गन्धयुक्त तम्बाकू सुंघानी चाहिए।
  • दौरों से बचाव हेतु ब्राह्मी घृत सुबह-शाम को देना चाहिए एवं रोजाना भोजन के बाद रसायन या चित्रक मूलादि चूर्ण के साथ ‘अमर सुन्दरी वटी’ देनी चाहिए। एलोपैथी में प्रोटाशियम ब्रोमाइड देने का विधान है।
  • बच का कपड़छन चूर्ण 4 ग्रेन (2 रत्ती) को 6 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से मृगी तथा हिस्टीरिया के दौरे बन्द हो जाते हैं। 2-3 मास सेवन करायें।



  • अकरकरा 100 ग्राम, पुराना सिरका 100 ग्राम, शहद 140 ग्राम।पहले अकरकरा को पीसकर सिरका में घोटें बाद में शहद मिला दें। यह 7 ग्राम दवा नित्य प्रात: रोगी को चटाएँ। मृगी को जादू की भाँति नष्ट कर देता है।
  • दो ग्राम तगर ठन्डे पानी में पीसकर प्रतिदिन प्रात:काल पिलायें। एक माह के प्रयोग से आराम हो जाता है।
  • करौंदें के पत्ते 10 ग्राम दही के तोड़ या मढे में पीसकर प्रतिदिन प्रात:-काल एक माह तक प्रयोग करने से आराम हो जाता है।
  • नौसादर 50 ग्राम को 1 लीटर केले के पत्तों के रस में डाल कर रख लें। मृगी के दौरे के समय रोगी की नाक में टपका दें। मृगी का दौरा तुरन्त शान्त हो जायेगा।
  • नीम की ताजी पत्तियाँ 5 तथा अजवायन और काला नमक 3-3 ग्राम मिलाकर 50 ग्राम जल में घोलकर प्रातः तथा सायं तीन मास तक प्रयोग करने से अपस्मार में लाभ हो जाता है।
  • शंखपुष्पी का रस 40-50 ग्राम तथा कूठ का चूर्ण 4 रत्ती को थोड़े से शहद के साथ लेते रहने से अपस्मार में लाभ होता है।
  • लहसुन 10 ग्राम तथा काले तिल 30 ग्राम दोनों को मिलाकर नित्य सबेरे 21 दिनों तक खाने से अपस्मार में लाभ हो जाता है।
  • कांटे वाली चौलाई की जड़ 20 ग्राम, काली मिर्च 9 दाने को 50 ग्राम जल में पीसकर छानकर मात्र सातदिन रोगी को पिलाने से अपस्मार चला जाता है।



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