हृदय का दर्द (ANGINA PECTORIS)

हृदय का दर्द (ANGINA PECTORIS)

Angina Pectoris – इसमें हृदय-स्थल पर तीव्र वेदना उठती है तथा अत्यधिक बेचैनी होती है। यह रात्रि में सोते समय अचानक होता है।
पहले एकाएक दर्द उठकर क्रमश: धीरे-धीरे कम होता है, दर्द का अनुभव
प्रायः छाती के अगले भाग में होता है, किन्तु कभी-कभी पिछले या बाएं भाग में
भी होता है। यह दर्द इतना तेज होता है जैसे कोई छाती में चीर-फाड़ कर रहा हो.

Angina Pectoris
Angina Pectoris

Image Credit :- Wikipedia

कभी-कभी साथ में जलन भी होती है। साँस लेने में कष्ट, आँख तथा नाक से
पानी आना, जी मिचलाना, कभी-कभी वमन हो जाना, नाड़ी की गति अनियमित हो जाना तथा दिल की धड़कन बढ़ जाना, बहुत अधिक कमजोर हो जाना आदि लक्षण हुआ करते हैं।

प्रौढ़ अवस्था के बाद स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को यह दस गुना अधिक होने
वाली बीमारी है। वात, उपदंश, बहुत ज्यादा धूम्रपान या मद्यपान, अधिक दिनों तक मानसिक उद्वेग, हृदय रोग, रक्त वाहिनियों के रोग, वृक्क रोग, गठिया तथा स्थूलता आदि इस रोग के प्रमुख कारण है। अधिक शारीरिक श्रम, अत्यधिक चिन्ता, आवेश आदि कारणों से तथा कभी-कभी यह वंश परम्परागत रूप में भी होता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी की नाड़ी की गति तेज होती है तथा रक्तचाप बढ़ जाता है एवं दर्द के साथ अक्सर अफारा हो जाता है। दर्द के दौरे के बाद पेशाब अधिक
मात्रा में तथा पीले रंग का आता है। इसमें दर्द के समय या बाद में रोगी की मृत्यु हृदय गति रुक जाने से हो सकती है।

दौरे के बाद जीवित रहने पर रोगी सांस जोर-जोर से लेता है। अक्सर खाली डकारें तथा पीला मूत्र आता है तथा रोगी कष्ट से छटपटाता रहता है।

Angina Pectoris पथ्य एवं अपथ्य

  1. लघु, शीतल, शीघ्र पाचक तथा पौष्टिक आहार रोगी को खाने को दें
  2. तम्बाकू, चाय, शराब, काफी, खट्टी चीजें, कोका, आध्मान कारक, गरिष्ठ
    एवं दीर्धपाकी आहार जैसे-अरबी, आलू, मछली, बैंगन, करेला, गुड़ तथा तेलआदि न दें।

विशेष नोट-

  1. Angina Pectoris – रोगी को अधिक शारीरिक तथा मानसिक परिश्रम न करने के लिए निर्देशित करें।
  2. इस रोग में चिन्ता से पूर्ण मुक्ति तथा पूर्ण आराम रोगी के लिए आवश्यक है।
  3. भोजन के बाद अवश्य विश्राम करायें ताकि दौरा उठे ही नहीं।
  4. रोगी को सर्दी से भी बचायें। दौरे के समय रोगी की गर्दन तथा छाती की सख्त चीजें तुरन्त हटा दें। कपड़ों के बटन आदि खोलकर शुद्ध वायु रोगी का दिलायें। उपचार-मूल कारणों को दूर करें। दौरे में रोगी को पूर्ण शान्त एवं विश्रामको कहें।

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